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बिंब और प्रतीक

कविता में बिंब और प्रतीक
प्रतीक
प्रतीक का सामान्य अर्थ है-संकेत चिह्न।इसका प्रयोग किसी अन्य अर्थ के स्थान पर किया जाता है।
जब कोई पदार्थ किसी भाव या विचार का संकेत बना जाता है तो प्रतीक कहलाता है।
उदा ः कबीर की रचनाओं में 'हंस' आत्मा का प्रतीक बनकर आया है।
प्रतीक के तीन वर्ग है-
.संकेतात्मक २.अभिव्यंजनात्मक ३.आरोपमूलक ।
इनमें आरोपमूलक प्रतीक दो प्रतीकों के वास्तविक रूप का प्रतिनिधित्व करता है।साहित्य में कथ्य को आकर्षक बनाना ही प्रतीक का मूल उद्देश्य है।
बिंब
शब्दों के माध्यम से निर्मित चित्र को बिंब कहते है।यह कल्पना-निर्मित और भाव-गर्भित होती है।इसकी पाँच विशेषताएँ मानी जाती है।
.चित्रात्मकता २.शिल्प रूपात्मकता ३.ऐन्द्रिकता ४.भावोत्पादकता ५.अप्रस्तुत के सन्निवेश का अभाव।
मानवेन्द्रियों को भावोद्वेलित करना ही बिंब का प्रमुख उद्देश्य है।बिंब का सामान्य अर्थ किसी पदार्थ को मूर्तरूप प्रदान करता है।कल्पना के उन्मेष से कवि काव्य बिंब का निर्माण करता है।

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