उपन्यास और उपन्यासिका
उपन्यास
मानव जीवन की गाथा है।इसमें विभिन्न पात्रों के द्वारा एक ठोस कथानक
क्रमबद्ध रूप से प्रस्तुत किया जाता है।उपन्यास की तुलना मानव शरीर से किया
जाता है।शरीर की रीढ़ की हड्डी उपन्यास की कथा है, रीढ़
के आस पास की हड्डियों के जाल तथा अंग उपन्यास के पात्र हैं।शरीर के मज्जा
और मांस पात्रों के अनुभव तथा अनुभूतियाँ हैं।रक्त उपन्यास का जीवन है।
उपन्यासिका उपन्यास का छोटा रूप है।इसमें भी एक ठोस कथानक होता है,उपन्यास
की तरह विभिन्न पात्र होते हैं।उपन्यास की तरह फैलाव तथा निरूपण वैविध्य
उपन्यासिका में नहीं।उपन्यास की कथा विकासमान और बहु आयामी तथा जीवन यथार्थ
से जुडी हुई होती है।उपन्यास के लिए दिक् और काल का विस्तृत आयाम आवश्यक
है।
उपन्यासिका की कहानी इकहरी होगी और उसमें काल का आयाम तो होगा,पर दिक् का फैलाव नहीं होगा।वर्णन विरलता,पात्रों की सीमित संख्या,विचार और चिंतन में मितव्ययता तथा मनोवैज्ञानिक गहराई में प्रवेश करने की प्रवृत्ति इसकी पहचान होती है।
कहानी और लंबी कहानी
कहानी
में दिक् और काल के आयाम में कथानक का विकास होता है।एकसूत्रता सघन बुनावट
और प्रभावान्विति इसके गुण है।ये सारे गुण लंबी कहानी में भी है।लंबी
कहानी में कहानी की अपेक्षा विस्तृत वर्णन होता है।
कहानी
में संवेदना या तनाव का कोई एक क्षण चित्रित होता है।लंबी कहानी में
संवेदना या तनाव का क्षण विस्तृत होता है।तनाव कुछ ज्यादा समय तक रहता है।
वार्तालाप और साक्षात्कार
वार्तालाप
अनौपचारिक रीति से चलनेवाली एक प्रक्रिया है-वार्तालाप।यह
हमारे जीवन का अभिन्न अंग है।इसमें औपचारिकता के लिए कोई स्थान नहीं।यह
पूर्व निश्चित भी नहीं।वार्तालाप में अक्सर वाक्य के स्थान पर वाक्यांशों
का प्रयोग होता है।
साक्षात्कार
साक्षात्कार
एकदम औपचारिक है।इसके लिए पूर्व तैयारी की आवश्यकता पड़ती है।किसी प्रमुख
व्यक्ति से किसी विशेष अवसर पर साक्षात्कार किया जाता है।इसके लिए
प्रश्नावली पहले तैयार की जाती है।साक्षात्कार देनेवाले व्यक्ति उनके
कार्यक्षेत्र आदि के बारे में थोड़ी जानकारी प्राप्त करने के बाद ही
प्रश्नावली तैयार की जाती है।
संपादकीय और रपट
संपादकीय
किसी
समाचार पत्र या पत्रिका के वरिष्ठ संपादक द्वारा संपादकीय लिखा जाता
है।समकालीन समाज के बहुचर्चित और गंभीर विषय पर संपादकीय लिखा जाता
है।संपादकीय से अमुक समाचार पत्र या पत्रिका का दृष्टिकोण प्रतिफलित होता
है।
रपट
रपट दैनिक घटनाओं के आधार पर लिखी जाती है।रपट में घटना संबंधी निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर ज़रूर होना हैं।
क्या ? कब ? कौन ? क्यों ? कहाँ ? कैसे ?
रपट
में शीर्षक पर ध्यान देना है।शीर्षक की आकर्षकता रपट की विजय बन जाती
है।शीर्षक ऐसा हो जिससे पाठकों के दिल में रपट पढ़ने की उत्सुकता बढ़ जाय।
आत्मकथा और डायरी
अपने जीवनानुभवों को क्रमबद्ध रूप से लिखना आत्मकथा है।यह कहानी शैली में लिखी जाती है,पर इसमें कल्पना के लिए स्थान नहीं।ईमानदारी इसका प्रथम गुण है।
डायरी में प्रतिदिन के निरीक्षणों ,अनुभवों और कार्यों का ब्योरा लिखा जाता है।उसमें निजी विचारों , भावों और विकारों की प्रधानता होती है।
डायरी
और आत्मकथा में मुख्य अंतर यह है कि डायरी में प्रतिदिन के ताज़े अनुभव
लिखे जाते है जब कि आत्मकथा में सुसंबद्ध ढंग से अतीत की घटनाओं और अनुभवों
को चुनकर लिखा जाता है।
प्रतीक और बिंब
जब कविता में कोई वस्तु इस तरह प्रयुक्त की जाती है,वह किसी दूसरी वस्तु की व्यंजना या संकेत करे तो प्रतीक कहते है।
जब कविता की शब्द योजना से किसी दृश्य या वस्तु या व्यक्ति का चित्र हमारे मन में साकार रूप से उभरे तो उसे बिंब कहते है।
बिंब में संवेदना अपने तात्कालिक रूप में होती है,पर
प्रतीक में संवेदना देर तक रहती है।बिंब जिस वस्तु का होगा उसी के आंतरिक
और बाह्य स्वरूप के सघन और गतिशील रूप का उद्घाटन होगा।लेकिन प्रतीक
प्रस्तुत वस्तु से अधिक भिन्न किसी और बात का संकेत करता है।
संगोष्ठी
संगोष्ठी
लोगों का सम्मिलन है जिसमें किसी विषय पर विमर्श किया जाता है।एक विशाल
श्रोतागण के सामने किसी विषय पर वक्तव्य देना संगोष्ठी है।संगोष्ठी से किसी
विषय को विभिन्न नज़रिए से देखने समझने का अवसर मिलता है।ज्ञानार्जन के
साथ साथ भाषा पर क्षमता बढ़ाने का भी अवसर संगोष्ठी द्वारा प्राप्त होता
है।
कक्षा
में संगोष्ठी का विषय देने के साथ विषय पर छात्रों का पूर्वज्ञान परखने के
लिए एक चर्चा चलाना अच्छा होगा।फिर अध्यापक की तरफ से एक छोटी-सी भूमिका देनी है।एक निश्चित समय देकर उसके अंदर संगोष्ठी आलेख करने का निर्देश दें।छात्र अपने दल में विषय को उपविषयों में बाँटकर,उन उपविषयों पर जानकारी एकत्र करें।ग्रूप में छोटे आलेखों को परिमार्जित कर संगोष्ठी का आलेख बनाएँ।
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