सुभाषिणीजी की कविता
12:12:12
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दौड़ते
हैं लोग फान्सी नंबर पाने को
खर्च
करते हज़ारों,
लाखों
पाने को
अजब-सा
फान्सी नेबर गाड़ी या फोन का
तो
माँ तू भी !
फँस
गायी उस जाल में !
मुझे
क्यों रहने न दिया अपने कोख
में?
क्या
फायदा में?
अपूर्व
अजब तारीख में जन्म लेने से,
स्वयं
विधाता बनने के दौरान
छीन
लिया तू ने मेरा पूर्ण विकास
छीन
लिया माँ के कोख में
स्वच्छंदता
से जीने का अवसर
पुन:
चाहने
पर भी न मिलनेवाला सौभाग्य
सृष्टा
का काम स्वयं संभालकर
जबरदस्त
लाया मुझे मूढ़ स्वर्ग में
मात्र
मुझे सौभाग्य मिलने से
बनेगा
क्या ?मेरा
जीवन सुखमय
फिर
क्यों मुझसे यह अन्याय,
माँ ।
सुभाषिणी
चंपयिल,
अध्यापिका,
देवधार सरकारी स्कूल,
तानूर , मलप्पुऱम जिला ।
हिंदी वेदी की ओर से बधाईयाँ ।
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