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उपन्यास और उपन्यासिका

उपन्यास मानव जीवन की गाथा है।इसमें विभिन्न पात्रों के द्वारा एक ठोस कथानक क्रमबद्ध रूप से प्रस्तुत किया जाता है।उपन्यास की तुलना मानव शरीर से किया जाता है।शरीर की रीढ़ की हड्डी उपन्यास की कथा है, रीढ़ के आस पास की हड्डियों के जाल तथा अंग उपन्यास के पात्र हैं।शरीर के मज्जा और मांस पात्रों के अनुभव तथा अनुभूतियाँ हैं।रक्त उपन्यास का जीवन है।

उपन्यासिका उपन्यास का छोटा रूप है।इसमें भी एक ठोस कथानक होता है,उपन्यास की तरह विभिन्न पात्र होते हैं।उपन्यास की तरह फैलाव तथा निरूपण वैविध्य उपन्यासिका में नहीं।उपन्यास की कथा विकासमान और बहु आयामी तथा जीवन यथार्थ से जुडी हुई होती है।उपन्यास के लिए दिक् और काल का विस्तृत आयाम आवश्यक है।
उपन्यासिका की कहानी इकहरी होगी और उसमें काल का आयाम तो होगा,पर दिक् का फैलाव नहीं होगा।वर्णन विरलता,पात्रों की सीमित संख्या,विचार और चिंतन में मितव्ययता तथा मनोवैज्ञानिक गहराई में प्रवेश करने की प्रवृत्ति इसकी पहचान होती है।

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